Samaj Me Samanta Aa Gayi Hai (Part-I) Poem by milap singh bharmouri

Samaj Me Samanta Aa Gayi Hai (Part-I)

समाज में समानता आ गई है

आज अचानक मैं
अपने नीम हकीम के पास पहुंचा
मुंह के उपले दांत का
मिजाज था मुझसे कुछ रूठा
मन मंजर को देख के
कुछ चक्कर सा खा गया
इस झोलाछाप के पास
आज कैसे मिनिस्टर आ गया

चेतना को परखने के लिए
खुद को हल्के से थप्पड़ भी जड़े थे
पर बाहर तो पर्ची की कतार में
कुछ और नामी लोग खड़े थे
फिर सवालों भरी नजर से
मैने मंत्री की और देखा
जबावी अंदाज में उसने भी
अपनी ऊँगली से इशरा फैंका
सोच क्या रहे हो
सुबह की अख़बार नही पढ़ी है
अब हर जगह पर समानता आ गई है
सुन के बात को
दिल फुले नही समाया
दिखाकर दांत को मैने
वापिसी को कदम बढ़ाया
कुछ ही दुरी पर
इक नामी मंहगा स्कूल नजर आया
शायद किसी फ़िल्मी एक्टर को
इसने था पढ़ाया
इसके गेट पर फिर मेरे
दिमाग में चक्कर खाया
गली के इक भिखारी का
बच्चा बाहर आते नजर आया
पीठ पर उसके मंहगा- सा
स्कूल बेग नजर आया
मैने भी धीरे-धीरे
बच्चे की तरफ कदम बढ़ाया
चकित -विस्मित मन मेरा
कुछ सोच ही रहा था
बच्चे ने नन्हा -सा हाथ
ऊँगली उठाते हुए उठाया
अंकल सोच क्या रहे हो
अभी-अभी यहाँ पर मैने
एडमिशन है पाया
तुमने? एडमिशन? यंहा?
झट मुंह पर मेरे आया
क्यों नही? अंकल
आपने सुबह की अख़बार नही पढ़ी है?
आज पुरे समाज में समानता आ गई है
जब उसने भी अख़बार का जिक्र किया
तो मै भी बगल की पतली गली से निकल लिया
अख़बार पढ़ी थी या नही
कुछ अखर सा रहा था
सब कुछ जैसे मानो
इक स्वप्न -सा चल रहा था
मैने सम्भलकर
कोशिस भी की चेतना परखने की
हाथ -पांव झटकने की
पर सब कुछ असली -सा लग रहा था
आगे देखा तो कुछ ओर तमाशा चल रहा था
कोई सौ मीटर की दुरी पर
दिख रहा था पंचायत घर
उसकी तरफ लगातार भीढ़ बढ़ रही थी
शायद कोई आपात बैठक चल रही थी
मेरे मन में भी कोतुहल बढ़ा
मै ओर तेज कदमों से आगे चला
ये क्या?
पंचायत में
अपनी-अपनी संम्पत्ति को लेकर
सब प्रधान के पास जा रहे थे
कोई बैंक के अकाउंट
कोई अपनी जमीं के कागज ला रहे थे

अथाह संम्पत्ति के मालिक
अमीर लोग प्रधान को बता रहे थे
बाँट दो हमारा सारा धन बराबर -बराबर
एक के बाद एक
अपने अकांउट उसे दिखा रहे थे
यह क्या? ये भूमि के मालिक
अपनी- अपनी जमीन के नक्शे
प्रधान को थमा रहे थे
बाँट दो सबमे बराबर -बराबर भूमि
साथ में रजिस्ट्री भी दिखा रहे थे
मै धीरे से आगे बढ़ा
समीप जहाँ पे प्रधान था खड़ा
मैने उसकी तरफ देखा
बिलकुल वैसे ही जैसे पहले था देखा
प्रधान ने जैसे मेरे
मुंह से सवाल था छिना
क्या सोच रहे हो?
सच है जो देख रहे हो
अब कोई भी जहाँ में गरीब नही है
सब के पास बराबर पैसा है
अब कोई भी नही
जहाँ में भूमिहीन
अब सबके पास बराबर भूमि है

This is the first part of poem

Milap singh bharmouri

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
is kavita me samaj me faili asmanta ko dikhaya gya hai.
COMMENTS OF THE POEM
Gajanan Mishra 21 February 2013

Milap babu, This is a good poem. I like it. thanks.

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