प्रथम हिन्दू महा संगीति क्यों? : आगे का भाग
मै ब्राह्मण हूँ
पर मेरी बेटी
एक हरिजन युवक से शादी करना चाहती है
सुंदर है, कामयाव है
पढ़ा - लिखा है
अगर कोई कमी दिखे तो मुझे बताओ
वो निर्भय होकर हमसे कहती है
बात तो सच है
जो हमने देखे ब्राह्मण युवक है
वो उसके आगे कुछ भी नही है
किसी भी तरह से परख लो
वो उसके आगे टिकते ही नही है
पढ़ाई में भी, चतुराई में भी
और कमाई में भी
उसका उनसे कोई मेल नही है
पर कैसे समझाऊ
इस जाति प्रथा से निकलना
मेरे लिए बच्चों का खेल नही है
अगर बेटी की मानु
तो भाई -बन्धु
माता -पिता सब
मुझसे दूर हो जांएगे
अगर उनकी मानु
तो ये नादान बच्चे न जाने क्या कर जायेंगे
मै फसा हुआ हूँ
बीच में पित्रि -भक्ति के, पुत्री प्रेम के
मै किसको अपनाऊ
मै किस को ठुकराऊ
मै पढ़ा -लिखा हूँ
पर इस निर्नेय के लिए
किसके पास जायूं
फिर थोडा - सा सम्भल के
वो कहता है
शुरू के वेद भी कहते है कि
हिन्दू धर्म में
कोई जाती- प्रथा नही थी
कितने ही सभ्य थे वो जन
उनकी आज जैसी दुर्दशा नही थी
गर स्तर अंतर था तो
वो व्यवसाय पर निर्भर था
लेकिन हर व्यक्ति का
सामाजिक भविष्य उज्ज्वल था।.....
आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा
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