Koi Kehkasha | Kuldeep Sharma Poem by KulDeep Sharma (KD)

Koi Kehkasha | Kuldeep Sharma

कोई कहकशाँ
लेखकः कुलदीप शर्मा

दूर रहना चाहता था उनकी आँखो से
पर रह नही पाया उनकी बातों से
डूब के देखा था उनकी आंखो में, ओर कहने लगी वो आँखे
मिरे दिल के रास्ते सीधे है कोई कहकशाँ नही हैं
सीने से लगा लो ना मुझको तुम अपने
निगाह-ए-जमाल की कसम, दिल की बिसात पे
कोई निशा रह गये है, कदमो की याद के
निगाह-ए-जमाल की कसम, दिल की बिसात पे
कोई निशान रह गये है, कदमो की याद के

सोचा नही था कभी हुस्न के हाथों मरेगें
वो प्यार नही था फिर भी एहसास इतना नाजूक था
की कोई टूट जाता कोई तोड देता किसी के साथ को,
ए-खुदा भूलु नही कभी उसको, तू याद दिला देना
वो प्यार नही मेरा, अमानत परवर दिगार की
याद बहुत आयेगी बेचेन रात में
वो कब मिलेगी फिर मुझे मेरी बांहो के हार में
निगाह-ए-जमाल की कसम, दिल की बिसात पे
कोई निशा रह गये है, कदमो की याद के
निगाह-ए-जमाल की कसम, दिल की बिसात पे
कोई निशा रह गये है, कदमो की याद के
-कुलदीप शर्मा

(मिरे-mine/ opposite/ in front of me, कहकशाँ-the Milkyway, galaxy, निगाह-ए-जमाल-eye for beauty/ aesthetic glance, बिसात-chess board, capacity, surface)

Koi Kehkasha | Kuldeep Sharma
Monday, October 22, 2018
Topic(s) of this poem: attraction,love,romantic
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KulDeep Sharma (KD)

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Beawar, Ajmer, Rajasthan
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