खुदा के शहर में
खुदा के शहर में देखा, दिया है न बाती है
जाणूं न कैसे मगर, रात जगमगाती है
सड़कें न पुल कहीं, हवाओं में फिर भी उडी
जाणूं न कैसे दौड़ी, गाड़ी चली जाती है
पंखा न कूलर वहां, लगे वातानुकूल नहीं
दिल को जुड़ाने वाली, बयार महकाती है
नहाने का घर नहीं, देखा न घाट कहीं
बारिशों के पानी में, दुनिया नहाती है
महंगे लिवास नहीं, पहने न गहने कोई
जाणूं न कैसे मगर, खूबसूरती लुभाती है
बागों में फल लगे, खेतों में अन्न भरे
फरिश्तों की भीड़ बैठ, जी भरके खाती है
सोने न जगने की, चिंता है करता कोई
उसका ही नाम बस, सुख चैन बरसाती है
(C) एस० डी० तिवारी
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