Jeeta hoon जीता हूँ Poem by Shiv Abhishek Pande

Jeeta hoon जीता हूँ

जीता हूँ
तेरी यादों को
ज़ेहन मे तेरी जफा
के इरादों से
इत्तेफाक रखता हूँ

मेरे इश्क से यूं
मु मोड़ कर जाने वाले
मै तो हार के भी
वफ़ा के वादों पर
एतबार रखता हूँ

तू वो तिशनगी है
जैसे जीने के लिए
सांसों सी तलब मे
मै मेरी रूह को मेरे जिस्म के
साथ साथ रखता हूँ

तू रखता है मेरे
एहसासों को
तेरी बेखुदी मे सराबोर
और मै यूं ही
तेरी खवाइश
मे खुद को
तलबगार रखता हूँ

बेहतर होता के काश
तू वो न होता बेवफा
जो मेरे मासूम इश्क को
खिलौना समझे
मै मेरे इश्क को इबादत
और मेरे खुदा को
गवाह रखता हूँ

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