Jab Hum Bachhe The... Poem by Gaurav Pandey

Jab Hum Bachhe The...

जहाँ से शुरू की थीं हमने छोटी- छोटी शैतानियाँ,
वो कांच की गोलियां या रंग बिरंगी तितलियाँ,
ये सब कुछ पाने को हम कितने बेताब थे,
हाँ सबसे अलग हमारे ख्वाब थे,
रोते थे, हँसते थे हम कभी, ,
तो माँ की गोद में सर रख कर सोते थे हम कभी, ,
जितना मीठा सब कहते थे हमको,
तब हम उतने खट्टे थे, ,
थोड़े कच्चे थे, थोड़े पक्के थे...
जैसे भी थे तब हम सच्चे थे

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I wish you guys will like it... :) Happy new year to everyone :)
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