Hindi Haiku 17 Oct Poem by S.D. TIWARI

Hindi Haiku 17 Oct

मैंने क्या खाया
दातों ने बता दिया
फँसी पालक

अँधेरी रात
और बढ़िया ताकें
उल्लू की ऑंखें

बेचारा चाँद
चांदनी धरा पर
स्वयं नभ में

पीढ़ी का द्वन्द
चलेगा चिरंतन
नयी पुरानी

न किलकारी
न चिल पों की ध्वनि
आँगन सूना

जैसे ही आयी
चहक उठा घर
नयी दुल्हन

हाथ में झाड़ू
आँगन में दुल्हन
पुरानी हुई

दुल्हन आई
फूलों सा खिल गया
घर अंगना

रोज पूजती
दादी बीच अंगना
तुलसी पेड़

बिछा के बैठे
आँगन में खटिया
गर्म रोटियां

मृत्यु भी सस्ती
सिद्धांतों को जीवित
रख पाये तो

सूना हो गया
बाबुल का अंगना
बेटी परायी

हुई बिदाई
माँ पिता चाचा भाई
सभी रो रहे

आई दुल्हन
चूड़ी की खन खन
नाचे आँगन

शिशु का होता
दूध पर अधिकार
राजा न रंक

हो सकता क्या
शेरनी का दूध पी
शेर हरेक

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