Halki Si Hassi | Kuldeep Sharma Poem by KulDeep Sharma (KD)

Halki Si Hassi | Kuldeep Sharma

हल्की सी हंसी
लेखकः कुलदीप शर्मा

मेरी हल्की सी हंसी न जाने क्या-क्या बया करती हैं
तेरी हंसी पे मरता हॅू मैं, ये बात घर तक जा चुकी हैं
पुछ लेना तेरे वालिद से एक मुलाकात कर के
आ रहा हॅू लेने तुझे थोडा मेरे लिए, सज ले-सवर ले
मेरी हल्की से हंसी न जाने क्या-क्या बया करती हैं

मेरी ये धडकने न जाने क्या-क्या बया करती हैं
तेरी धडकनो पे मरता हॅू मैं, ये बात घर तक जा चुकी हैं
कह देना अम्मीजा से काला टीका कर दे
आ रहा हॅू लेने तुझे थोडा मेरे लिए, सज ले-सवर ले
मेरी हल्की से हंसी न जाने क्या-क्या बया करती हैं

मेरी ये बातें न जाने क्या-क्या बया करती हैं
तेरी बातों पे मरता हॅू मैं, ये बात घर तक जा चुकी हैं
कह देना मेरी अम्मी से हाथ सर पे रख दे
आ रहा हॅू लेने तुझे थोडा मेरे लिए, सज ले-सवर ले
मेरी हल्की से हंसी न जाने क्या-क्या बया करती हैं

मेरी ये नादानी न जाने क्या-क्या बया करती हैं
तेरी नादानी पे मरता हॅू मैं, ये बात घर तक जा चुकी हैं
कह देना तेरी छुटकी से की वो रो न दे
आ रहा हॅू लेने तुझे थोडा मेरे लिए, सज ले-सवर ले
मेरी हल्की से हंसी न जाने क्या-क्या बया करती हैं
~कुलदीप शर्मा

Halki Si Hassi | Kuldeep Sharma
Friday, October 19, 2018
Topic(s) of this poem: love,marriage,romantic
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KulDeep Sharma (KD)

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Beawar, Ajmer, Rajasthan
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