Dil ho ya Sheesha दिल हो या शीशा Poem by S.D. TIWARI

Dil ho ya Sheesha दिल हो या शीशा

दिल हो या शीशा

कौन कहता है नासमझ दिल को शीशा
अरे दिल तो दिल है और शीशा है शीशा
दिल तो चोट खाता रहता टूटता रहता
और एक ही चोट में टूट जाता है शीशा
टूटा दिल रोता भी है बिन आवाज के
जोर की आवाज कर के टूटता है शीशा
दिल तो टूट कर खुद ही दर्द सह लेता
टूटकर औरों को चुभ जाता है शीशा
टूटा हुआ दिल तो तार तार हो जाता है
फिर से पिघल जाता है टूटा हुआ शीशा
टूटा हुआ दिल एस डी, रहता दर के दर
दूर तक बिखर जाता है टूटा हुआ शीशा

- एस. डी. तिवारी

Saturday, January 24, 2015
Topic(s) of this poem: Hindi
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