कविताः- बदलने लगें
लेखकः- कुलदीप शर्मा
हम चाहते तो उन्हें मना लेते
पर वो रूठे नही, बदलने लगें हैं
हम चिल्ला-जिल्ला दिये थे उनपे गुस्से में
पर उन्हें भुला नही पायेगें
उन्हें भी याद जरूर होगें
पर वो रूठे नही, बदलने लगें हैं
पुछते रहे वो कुछ बात हमसे
हम जिन्दगी की दौड़ में जूझतें रहें
वो सोचे, बदल हम गयें हैं
कभी खौफ में जिना सिखा नही हमनें पर
दूरी का खौफ नजर आने लगा हैं
हम चाहते तो उन्हें मना लेते
पर वो रूठे नही, बदलने लगें हैं
कोशिश कि इतवार की षाम उन्हें रोकने की
पर शायद रात उनकी गुजरेगी नही
तनहाई में डूबे हैं हम
तनहाई में डूबे वो भी होगें
बस बात एक हैं
सोये नही होगें वो
और न ही सोये हम हैं
हम चाहते तो उन्हें मना लेते
पर वो रूठे नही, बदलने लगें हैं
इक रात जब पूछा था हमने
कितना साथ निभाओगें
बोले वो इसकदर की मरकर भी चाहेगें
आज वो बात रूला रही हैं
तनहाई हमें डरा रही है
रात भी रूला रही हैं लेकिन
हम चाहते तो उन्हें मना लेते
पर वो रूठे नही, बदलने और बदला लेना चाहते है।
-कुलदीप शर्मा
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