सोच में रह,
चुनिंदा तारीखों को घेर लगाते
कैलेंडर को नया लगाते
एक हलचल सा मन में
वो रिश्ता कैसा मासूम सा,
जाते वक्त के रातों से
पलों के चादर से लिपटकर
टिमटिम से करते सितारे,
चांद भी है बेबसी में,
छोड़ना भी उसको पुराना है
नव वर्ष में ढलना है,
ये अंत वर्ष की रातों को
कल का नया आसमां,
नया चमकता सूरज देखना है
लम्हा भी तजुर्बे लिए,
बीते वक्त के पन्नों से
गुरुर टूटा कसमें टूटी
टूटे वक्त के जाते तारे,
गुजरे वक्त से है सबक सीखा
दो वक्त और ठहरती कैसे,
जाना था जब नए वक्त में।
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