मुसाफिर हूँ, तेरे दिल में बसेरा मांगता हूँ Poem by Abhishek Omprakash Mishra

मुसाफिर हूँ, तेरे दिल में बसेरा मांगता हूँ

मुसाफिर हूँ, तेरे दिल में बसेरा मांगता हूँ
अंधेरों में जिया हर पल, सबेरा मांगता हूँ
बांके के ह्रदय में यूँ, सदा से जो समायी है
इस दिल में, उसी राधा का फेरा मांगता हूँ

''कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा''

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: love and pain
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
मुसाफिर हूँ, तेरे दिल में बसेरा मांगता हूँ
अंधेरों में जिया हर पल, सबेरा मांगता हूँ
बांके के ह्रदय में यूँ, सदा से जो समायी है
इस दिल में, उसी राधा का फेरा मांगता हूँ

''कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा''
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