मैं Poem by Lalit Kaira

मैं

मैं नही जानता दर्शन क्या है
मुझमे जिजिविषा है
मै कठोर ह्रदय वाला हूँ
मगर
मैं ढल सकता था
तुम्हारी कल्पना मे
पर अब मुझे गढ़ा नही जा सकता
मैं पाँजे का पत्थर नहीं हूँ
सिर्फ घिसने वाला
मरने वाला
पत्थर

Monday, July 21, 2014
Topic(s) of this poem: life
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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