सपने छोटे गाँव के Poem by Vishnu Pandit

सपने छोटे गाँव के

सपने छोटे गाँव के, पर शहर से बड़े हैं
मन की डालियों पर, पंछी वोह खड़े हैं.
खुला आसमान ही चाहिए उड़ने के लिए,
और इमारतें तो बनी हैं लड़ने के लिए.

मन तो जंगल है, घर है मेरा
उम्मीद की किरणों का लगता है डेरा
धूप शहर की छन सी जाती है,
पूछती है हवा की यहाँ क्यूँ आती है?

सपने मेरे घर के आँगन में उतरने के लिए
साथ मेरी ज़िन्दगी में बस चलने के लिए
गाँव के थे जो गाँव के लिए खड़े हैं
शहर से डरते नहीं, वोह शहर से बड़े हैं.

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Vishnu Pandit

Vishnu Pandit

Nanital, India
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