मेरा जहाज़ Poem by Vishnu Pandit

मेरा जहाज़

पानी की एक-एक बूँद, जुडकर बना समंदर

उस समंदर पर मेरा जहाज़, डोलता इठलाता

चलता है इधर से उधर, समेटे हुए हमें

एक शरीर जैसे आत्मा को लेकर

एक एक आदमी से बने इस संसार में

कभी पता है शांति, सुख इस गहराई में, और

कभी गुस्सा और अशांति उन लहरों से...

व्याकुल होता है प्रिया रुपी नदी से मिलने पर

सांसें लेता है ज्वार भाटों सी

देता है शरण जैसे सीप का मोती

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Vishnu Pandit

Vishnu Pandit

Nanital, India
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