कभी कभी Poem by Sumit Ojha

कभी कभी

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कभी कभी

मिलकर बिछड़ना सुब है मुमकिन

लकिन दिल से दिल की बात

कभी कभी, ! !

चाँद का आइना देखा है अक्सर

लकिन उनके चेहरे पर मुस्कान

कभी कभी, ! !

दीपक की रोशनी नहीं दिखाई देती

लेकिन उस रोसनी पर निर्भर लोग दिखते

कभी कभी, ! !

रास्ते सही हो या गलत मंजिल तक जाने के

उन ठोकरो से इंसान सुधरता है

कभी कभी, ! !

हम मौत के पास आज खड़े है

जिंदगी तो जिए है हम

कभी कभी, ! !

कभी कभी
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Sumit Ojha

Sumit Ojha

Ahmedabad
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