क्या करूँ उस पगली का Poem by Prabhakr Anil

क्या करूँ उस पगली का

क्या करूँ उस पगली का, जिसके लिए आहे भरता हूं?
पाने की दिल मे आस नही, पर क्यों खोने से डरता हूँ?

थाह नही जज्बातों का, बातों से मन भरता नही।
दिल मे चुभती हर एक शब्द, फिर भी बातें क्यों करता हूं?

वो एक परी पक्का शहरी, बड़े ख्वाबो में खोयी रहती हैं।
पर मैं तो एक बंजारा हूं, उसपे इतना क्यों मरता हूं?

दिल की माने तो इसका क्या, हर बार फिसलता रहता है।
पर अरसो से एक ही लम्हो में, क्यो बार बार गुज़रता हूं?

क्या करूँ उस पगली का, जिसके लिए आहे भरता हूं?

क्या करूँ उस पगली का
Monday, April 1, 2019
Topic(s) of this poem: love
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Prabhakr Anil

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Kotwan, . Barhaj deoria up
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