आओ निकल कर सामने किरदार दिखादो
भटके हुए राही को कोई राह दिखा दो
करनेलगेगा ख़ुद-बा-ख़ुद वोह आसमां कि सैर
इल्म-ओ-हुनर कि दौलत से परवाज़ सिखादो
हररोज़, ज़िन्दगीभर सहारे से है बेहतर
कुछ दिन ही हो मदद मगर ख़ुद्दार बनादो
काँटों भरे बबूल के जंगल तो हैं बहोत
दो-चार दरख़्त ही सही फलदार लगादो
क़ीमती होजाएगी बंजर ज़मीन भी
सींचो कोई मगर के यूं नमदार बनादो
जीना सिखारहा हैबेलौस ज़िन्दगी
ऐसा है कौन नादिर दीदार करादो
लेखक: नादिर हसनैन
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