कभी साये को देखते थे हम ~ फुरसत के लम्हो में
अब वक़्त फिसल गया कैसे ~ ये सोचने की भी फुरसत कहाँ
दुनिया के ऐशो आराम को~ जी का जंजाल बना लिया है
हर पल बदल रहा है ~मौसम की तरह
जो आज है न होगा ~ कल भी इसी तरह
बदल जो बनके घूमे ~ है आसमा में आज
कल वो बरस के आएगा ~इस मिटटी के पास
Hey you guy, I do not understand this language but yours is nice poem.
Thank u so much, You may read now the translation Floating in the Sky
अब वक़्त फिसल गया कैसे ~ ये सोचने की भी फुरसत कहाँ.....so touching and impressive. A beautiful poem so nicely and hauntingly delineated.10