अब चल नई सौगात लिख Poem by Uddhab Naik

अब चल नई सौगात लिख

आज समय के बेडियों ने, बांध रखा तूझे तो क्या |
शीशे के कमरे में, अपने ख्वाहिशों को घुटने न दे |
तेरे कलम में जोर इतना, तू उठ चल हो खड़ा |
तू ही रवि, तू ही कवि, अब चल मृदु झंकार दे |

साथ तेरे न कोई अब, बंद सभी राहें तो क्या |
तेरे हृदय में सूरज बसा, अब नई ललकार दे |
न सोच तूने क्या है खोया, और किया है क्या गलत |
है धूप कभी और छांव कभी, उठकर अभी आगाज दे |

शिशकियों में तेरे, जो बह गए मोती तो क्या |
तू हंसी बन सकता है अब भी, मायूसियत को जीने न दे |
यह एक पग जो कर लिया तूने सफर, तो मंजर कुछ और होगा |
अब चल नई सौगात लिख, अंधेरे को तू यूँ पलने न दे |

- उद्धव नायक

Wednesday, June 17, 2020
Topic(s) of this poem: life,friendship,god
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