चंचल है मेरा मन Poem by Rinku Tiwari

चंचल है मेरा मन

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चंचल है मेरा मन
फिर भी है शुन्य समान
रुकता नहीं कभी
शांत नहीं रहने देता कभी
कुछ शरारत करने
को करता हैं मेरा मन
चंचल है मेरा मन
कभी रचता है ऐसा खेल
जुगनू को पकड़ने सा है मेल
गुर कि तरह मीठा है मेरा मन
नीबू कि तरह खट्टा है मेरा मन
पर्वत कि तरह स्थिर है मेरा मन
चन्द्रमा कि तरह शीतल है मेरा मन
फूल कि तरह कोमल है मेरा मन

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