लाज़वाब Poem by Gillu Rahul

लाज़वाब

Rating: 5.0

तू आज भी लाज़वाब लगता है,
जैसे सास लेता मेहताब लगता है ।

नसा बोतलों में नहीं, तेरे हुस्न में है,
तूझे देखके तो, पानी भी शराब लगता है ।

अगर तू सामने हो, तो पहले खुद को जगाता हूँ,
तू खुले आँखों का ख्वाब लगता है ।

पढू या महसूस करू, इस कस-म-कस में हूँ,
हर एक लफ्ज़ में चुप, तू कोई किताब लगता है ।

नज़रो का दोस नहीं, यह दिल का कसूर है,
उम्र ढल गयी, पर तू मुझे वाही गुलाब लगता है ।

तू आज भी लाज़वाब लगता है,
जैसे सास लेता मेहताब लगता है ।

#गिल्लू

लाज़वाब
Monday, April 13, 2020
Topic(s) of this poem: sad love
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Gillu Rahul

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Patna
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