काफी है Poem by Sona Khajuria

काफी है

उदासियों भरा जीवन है, इक पल खुशी का काफी है|
जायजों का कोई मोल नहीं, भर पेट खाना काफी है|
उदास मुरझाए चेहरों के लिए, इक फूल हँसी का काफी है|
खिलोनों की खन-खन जरूरी नहीं, बचपन का चहकना काफी है|

अंधियारे मन के लिए, सूरज का होना काफी नहीं
सफलता की डोरी थामने को, इक आस का होना काफी है|
मझधार में डूबती नैया को, तिनके का सहारा काफी है|
धूप में जलते पाँवों को, टूटी दिवार का साया काफी है|

आसमान तक पहुँचना काफी नहीं, इंसानियत तक पहुँचना काफी है|
दुनिया की जीत जरूरी नहीं, मात-पिता का भरोसा काफी है|
प्रतिदिन त्योहार जरूरी नहीं, उल्लास भरा मन होना काफी है|

मानवता के निर्माण हित, ईमानदारी का होना काफी है|
वाह-वाह के शोकिनों के लिए, लफ्जों का होना काफी नहीं|
भाव समझने वालों के लिए, बस इतना कहना काफी है|
बस इतना कहना काफी है|

Saturday, April 4, 2020
Topic(s) of this poem: inspiration,life
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Sona Khajuria

Sona Khajuria

Jammu and kashmir
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