श्रीराम से सिखिए,
कैसे एक दृष्टि में सब को रखना,
धर्म को अपना कर्तव्य समझना,
स्वयं की पिड़ा भूल कर,
वह सेवा भाव अपनाते हैं,
श्रीराम से सिखिए वचनों को कैसे निभाते हैं|
सो दफा हो सिना कूंठित,
किंतु बड़ों का मान बढ़ाते हैं
मर्यादा की सिमा कायम रख,
वह जन-मानस कहलाते हैं,
श्रीराम से सिखिए वचनों को कैसे निभाते हैं|
कटु वाणी को हँस कर पिना,
धर्म के पथ पर आगे बढ़ना,
हो मात-पिता की आज्ञा यहाँ,
वनवास भी काट कर आते हैं|
श्रीराम से सिखिए वचनों को कैसे निभाते हैं|
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