बचपन और बुढ़ापे में अजब सा एक नाता है Poem by NADIR HASNAIN

बचपन और बुढ़ापे में अजब सा एक नाता है

बचपन और बुढ़ापे में अजब सा एक नाता है
लुटा कर ज़िन्दगी बच्चों पे बूढ़ा मुस्कुराता है

जिगर के ख़ून से सींचा शजर फलदार होने तक
वही बच्चा ऊस बूढ़े को अकेला छोड़ जाता है

: नादिर हसनैन

Monday, August 7, 2017
Topic(s) of this poem: scared
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