मिट्टी के घर में रहते थे इंसान खो गए Poem by NADIR HASNAIN

मिट्टी के घर में रहते थे इंसान खो गए

मिट्टी के घर में रहते थे इंसान खो गए।
पोख़तह मकान होते ही पत्थर के हो गए।
माँ बाप के लिए है खुला वृद्धा आश्रम।
ख़िदमत करेगा कौन वो सत्तर के हो गए।

- नादिर हसनैन

Monday, August 7, 2017
Topic(s) of this poem: scare
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