ग़फ़लत की चकाचौंध में मदहोश है दुनियां Poem by NADIR HASNAIN

ग़फ़लत की चकाचौंध में मदहोश है दुनियां

ग़फ़लत की चकाचौंध में मदहोश है दुनियां
बेहोश को भी होश में लाएंगे ज़लज़ले 


एक पल में ख़ुदा चाहे तो दुनियां को मिटा दे 
एहसास हर बशर को दिलाएंगे ज़लज़ले 


क़ुदरत की सरज़मीन से खिलवाड़ मत करो 
ज़ुल्मो सितम बढ़ेगा तो आएंगे ज़लज़ले 


अल्लाह के घर देर है अन्धेर नहीं है
इन्साफ़ एलाही का दिखाएंगे ज़लज़ले


हक़दार का हक़ छीन कर तड़पा ना ऐ 'नादिर'
बातिल का सोकूं, नीन्द उड़ाएंगे ज़लज़़ले

: नादिर हसनैन

Saturday, July 22, 2017
Topic(s) of this poem: god,strength
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