बेबसियॉ Poem by Mandeep Chahal

बेबसियॉ

छाती पर बिठाये, , सीने से लगाये, ,
धूप बारिश तूफानो से बचाए, , ,
मगर फिर भी वो चिड़िया उड़ जाए, , ,
तो शाख क्या करे, , ,
.
उसकी आग को वो खुशनुमा बाहार करदे
खुदके पहलू में लेके ऐसा सृंगार करदे
मगर फिर भी सूरज ढल जाए...
तो शाम क्या करे
.
.सच्चे जूठे उल्टे सीधे सब नुस्खे अपनाये...
नंगे पांव तो कभी आग से जिस्म जलाये...
मगर फिर भी कोख सुनी ही रही हाए..
तो बांझ क्या करे....
.....
पानी से नैना लड़ाये...
जल में मिल, जल ही जाए...
मगर फिर भी पानी पिघल ना पाए.
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तो आग क्या करे..

Monday, June 12, 2017
Topic(s) of this poem: helpless,helplessness,sad
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 13 June 2017

जीवन में कभी कभी आने वाली असहायता और विडंबनाओं का बहुत सुंदर चित्रण. धन्यवाद, मंजीत जी.

1 0 Reply
Mandeep Chahal 13 June 2017

Dhanyawad

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