कितने अरसों से हम नहीं मिले
और अब तो यूँ लगता है
कि अब हम कभी मिलेंगे भी नहीं
जैसे नदी के दो किनारे
जो ना कभी मिलते हैं
ना ही मिलते हुए किसी छोर पर नज़र आते हैं
मुझको तो याद हो तुम
उसी पुरानी याद की तरह
जिसका एहसास मिट्टी पर पड़ती
बारिश की बूँदों की सौंधी खुशबू की तरह होता है
सादगी के लिबास में लिपटी हुई
बेलौस ख़ामोशी में बसी
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कैसी सुन्दर किन्तु आहत करने वाली कल्पना है मिलन की नाउम्मीदी जैसे नदी के दो किनारों का रिश्ता. लेकिन वह याद भी कितनी सुखद है जिसका एहसास मिट्टी पर पड़ती.... बारिश की बूँदों की सौंधी खुशबू की तरह होता है. कमाल का चित्रण है, अभिलाषा जी.