ये! काश Poem by sanjay kirar

ये! काश

ये! काश

नियमावली में एक नियम ऐसा होता

जग जिन बातो पर हँसता है

उनके संग में भी खुश होता

काल पाठ के सभी अलंकार

अपनी रेखाओ से बुनता

ये! काश

नियमावली में एक नियम ऐसा होता

शब्द जहाँ मुझसे कहते

मेरे संग हँसते-रोते

गाथाओ के मूल अवतरण

बिना झिझक मुझमे होते

ये! काश

मेरे जीवन में भी एक हवन तुमसा होता

नियमावली में एक नियम ऐसा होता

जो मेरा अंश बना है

सर्वस्व बना है, यज्ञ बना है

मेरी कुंडली का

इकलोता नक्षत्र बना है

ये! काश

मेरे जीवन में भी उसका मौलिक वर्चस्व होता

नियमावली में एक नियम ऐसा होता

मैं बागो का ऐसा फूल हुआ

तितली, भौरों की भूल हुआ

कुछ पल पहले ही खिलना सीखा

और माली का मूल्य हुआ

ये! काश मेरे जीवन में भी तितली भौरों का वात्सल्य होता

नियमावली में एक नियम ऐसा होता

S@njay kirar

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