अब है फुर्सत यहॉ किसे,
कौन किसको याद करता है!
मंजिल खोई नहीं
है दुर खड़ी!
अपनी दुनियॉ मे जीता मरता है !
पुछा है राहों से पॉवों ने,
छाले इतना क्युं मुझमे बोता है!
होते हस्ती थे जो दिल में कभी,
वस्ती क्युं दुर वो बसाता है!
होते ना दुर वो कभी फिर भी,
ना ही पास वो रह पाता है!
हुत बढ़िया, वो बेशक अपनी दुनिया में जीता है जो किसी की परवाह किये बिना अपनी ज़िन्दगी जीता है....
par beparwahai ke karan hi ham sab ek-dusare se dur hote ja rahe hain..
बहुत सुंदर. आज अपने आसपास देखते हैं तो दृश्य आपके वर्णन से तनिक भी अलग नहीं दिखता. धन्यवाद. अब है फुर्सत यहॉ किसे, कौन किसको याद करता है! अपनी दुनिया मे जीता मरता है !
तू अपने अल्फाजों को ऐसे क्यू जताता है, ये दुनिया है दर्द देने वालों की यहाँ अब मरहम कौन लगाता है, यहाँ हर मंज़िल है पर रोड़े बिछे, इसे मेहनत ही आफताब बनाता है।
A marvelous write, Ajay. Loved and enjoyed reading it.The words flow so beautifully.Hope, You will reach your goal very soon though it seems distant.
बहुत बहुत धन्यवाद भारती जी....... आपका प्रोतसाहन ही हमारा पारितोषक होगा!
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I would like to translate this poem
A beautiful poem, nicely penned...........................
bahut bahut dhanyawad sir!