जो बात बात पे बात छिड़ी। Poem by Prabhakr Anil

जो बात बात पे बात छिड़ी।

जोएक लड़का अपने दोस्त से आपनी फीलिंग
शेयर करता है |

जो बात बात पे बात छिडी,
उस बात पे बात ना बन पायी ।

हर बात बात को हास्य बना,
हँसते हँसते वो गीर जाये ।
जज्बात को बात से ढक डाला,
ना समझे, ऐसे पेस आये ।

उसके बात बात को समझ के मै,
जब जब बातों पे जोर दिया ।
हर बात को ऐसी मोडती वो,
जैसे हवा ने रुख को मोड़ लिया ।

जब समझ को उसके समझा मै,
उसकी समझ, समझ मे तब आयी ।
ये तो पहले से ही वहाँ डूबी है,
जहाँ डूबने की इच्छा थी भाई ।

अब सोचा बात बढ़ाने को,
और बात को लेकर बात बढा ।
तब बात बात मे क्या कहूँ,
एक और भी बात निकल आयी ।
ये डूबी नही जहाँ सोचा था,
कही और से डूब के है आयी|

Monday, December 11, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Prabhakr Anil

Prabhakr Anil

Kotwan, . Barhaj deoria up
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