मैं स्त्री हूँ
रत्नगर्भा, धारिणी
पालक हूँ, पोषक हूँ
अन्नपूणा,
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आसमान सा है जिसका विस्तार
चॉद-सितारों का जो सजाए संसार
धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें
है नारी हर जीवन का आधार
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मैंने हँसाना सीखा है
मैं नहीं जानती रोना।
बरसा करता पल-पल पर
मेरे जीवन में सोना॥
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राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
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रोटी रोटी करता है हर गरीब का पेट
स्वाभिमान से नही भरता गरीब का पेट
ईमानदारी से नही भरता गरीब का पेट
सांतवना से नही भरता गरीब का पेट
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भीख के कटोरे मैं मजूबूरी को भरकर...
ट्रॅफिक सिग्नल पे ख्वाबों को बेच कर
ज़रूरत की प्यास बुझाता बचपन............
नन्हे से जिस्म से करतब दिखा कर..
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प्यारी माँ मुझको तेरी दुआ चाहिए, तेरे आँचल की ठंडी हवा चाहिए,
लोरी गा गा के मुझको सुलाती है तू, मुस्कुराकर सबेरे जागती है तू,
मुझको इसके सिवा और क्या चाहिए, प्यारी माँ मुझको तेरी दुआ चाहिए।
तेरे ममता के साये मे फूलु फलु, थाम कर तेरी उंगली मै बढ़ता चालू,
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नारी से है हम, नारी से हो तुम,
नारी ही माँ बहन है,
नारी ही है बहू बेटियाँ ।
नारी से घर स्वर्ग बना है,
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माँ तुम महक हो
उस फूल की
जिसे रिश्ता कहते हैं
माँ तुम फूल हो
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पुराने जख्म भर जाएँ.....
तो कह दें हम भी कि
अब नया वक़्त आया है
दिलों से दर्द मिट जाए...
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