कलंकित रिश्ते Poem by Gaya Prasad Anand

कलंकित रिश्ते

अब रिश्ते तार तार हो रहे हैं
कहीं पति तो कहीं पत्नी पर वार हो रहे है
कहीं सासू दामाद का चक्कर है
तो कहीं समधी - समधन संग फरार हो रहे है
मर्यादा तो भंग हो चुकी है कब की
अब समाज में खुले आम व्यभिचार हो रहे हैं
हर रिश्ते कलंकित अब हो रहे हैं ऐसे
लोग सुन सुन के शर्मसार हो रहे हैं
हैवानियत बढ़ गई है इतनी
लोग हिंसा के शिकार हो रहे हैं
अब रिश्ते तार तार हो रहे हैं
गया प्रसाद आनन्द
(आनन्द गोंडवी)
मो.9919060170

कलंकित रिश्ते
Tuesday, April 22, 2025
Topic(s) of this poem: fake love
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