दर्पण हूं मैं Poem by ARYAN KUMAR

ARYAN KUMAR

ARYAN KUMAR

follow poet
ARYAN KUMAR
follow poet

दर्पण हूं मैं

दर्पण हूं मैं

दर्पण में खुद को देखा एक दिन
खुद के अंदर खुद देखा एक दिन

कौन हूं मैं,

दर्पण हूँ मैं, सच्चाई का दर्पण,
रूप रंग, छवियाँ, सब कुछ मेरे पास हैं।
चेहरे की मुस्कानों में, छुपा दर्द दिखाता हूँ,
आँसुओं की बूँदों में, ख्वाबों की कहानी सुनाता हूँ।

बदलता रहता हूँ, साथी हर मौसम का,
अपनी कहानी, हर नये सवेरे में बयां करता हूँ।
कांपती रातों में, जब तारे छुपे हों,
आईने के सामने, ख्वाबों की बातें करता हूँ।
चेहरे की गहराईयों में, छुपा एक अंजान सी राज,
कहानियों को बोलता हूँ, हर बार नए आयाम से।

चेहरे की हर मुस्कान में, छुपा एक दर्द,
आईने के सामने, सच्चाई का सफर ताय करता हूँ।
जो कुछ भी हूँ, वह आईने में है,
मेरे अंदर की दुनिया, जो हर रोज बदलता हूँ।

दर्पण हूँ मैं, सच्चाई का दर्पण,
रूप रंग, छवियाँ, सब कुछ मेरे पास हैं।
रात की गहराईयों में, जब सिर्फ अंधेरा हो,
आईने के सामने, सपनों की रौशनी बनता हूँ।

दर्पण है मेरा साथी, मेरी रौशनी का दर्पण,
छुपे हैं राज, ख्वाबों के मन का छोटा सा दर्द।
रूप रंगों की कहानी, हर बार नई होती है,
आईने में ही मैं, अपनी कहानी बयां करता हूँ।

आँधी में भी, जब हवा चले सहम के
आईने के सामने, मैं खुद को आजमाता हूँ।
चेहरे की मुस्कान, और आँसुओं का सफर,
आईना बताता है, कैसे बदलता है मेरा चेहरा।

जीवन के हर पड़ाव में, जब लोगों की भीड़ है,
आईना ये सिखाता है, कैसे हकीकत में मैं सही हूँ।
सपनों की उड़ान में, जब खो जाता हूँ मैं,
आईने के सामने, मैं अपनी उंचाइयों को छू जाता हूँ।

आईना है मेरा साथी, मेरी जीवन यात्रा का साक्षी,
छुपी हर बात, मैं आईने के सामने ही खोलता हूँ।

दर्पण हूं मैं


चेहरे की छाँव में, दिल का हर राज़ हूं,
दर्पण हूं मैं, खुद से मिलता विश्वास हूं।
मुस्कान में छुपा, आँसू का गीत हूं,
दर्पण हूं मैं, अपने सपनों का सवरूप हूं।

जीवन की भूपर में, सवालों का जवाब हूं,
दर्पण हूं मैं, स्वीकार करने वाला हूं सब।
राज़ खोलता हूं, ख्वाबों का सच हूं,
दर्पण हूं मैं, खुद को जानने का सबसे अच्छा तरीका हूं।

दर्पण हूँ मैं

आँधियों की रातों में, जब अंधकार छाया,
दर्पण हूँ मैं, खुद को समझने का जरिया।
चेहरे की मुस्कानों में, छुपा है एक कहानी,
दर्पण हूँ मैं, रहस्यों का खुला पुस्तक हूँ।

सच का सामना करता, जब रूप बदल जाता,
दर्पण हूँ मैं, जीवन के रंगीन सफर का बयां।
मैं दर्पण हूं, अपने दिल की बातें बताता हूं
मेरी शक्ल में छुपी है सच्चाई की राज़

मेरे अंदर छुपी हुई ज़िन्दगी की कहानी
किसी भी राज में, मैं अपने दर्द को छिपाता हूं
मैं दर्पण हूं, जो हर किसी को सच्चाई बताता हूं
मेरी चमक में, छिपा है हर किसी की ख़ुशी-ग़म
मैं दर्पण हूं, जो तुझे तेरे अंदर दिखाता हूं,
तेरे रंग-बिरंगे सपनों को सच्चाई में बदलाता हूं।

मैं तेरे अंदर छिपी हुई ताकत को जगाता हूं।
मैं दर्पण हूं, जो तेरे दर्द को समझता है,
तेरी आंखों में छिपे आंसू को बहाता हूं।
मैं तेरे जीवन की रौशनी को बढ़ाता हूं।

मैं दर्पण हूं, जो तुझे सच्चाई से रूबरू कराता हूं,
तेरे अंदर छिपी खुशियों को निकालता हूं।



दर्पण हूं मैं, सच्चाई का परिचायक,
रूप-रंग में छुपी कहानियों का बयानक।

जो भी आता है मेरे सामने,
उसे दर्पण में अपना रूप दिखाना है।
चेहरे की मुस्कानों का गुज़ारा,
या आँसुओं का साथी होना है।

जीवन की राहों में मैं बना हूं,
हर कदम पर राह बताना है।
खुद को देखने का वक्त आया है,
मन की गहराइयों में छुपी बातें बताना है।

दर्पण हूं मैं, रूपों का महत्वकारी,
हर अभिव्यक्ति को खुद से मिलाना है।

आँखों में छुपे ख्वाबों को देखना है,
दिल की धड़कनों को सुनना है।
कभी हँसता, कभी रोता हूं,
सारे रंगों में खुद को पहचानता हूं।

जीवन के सफर में बदलता हूं,
और सबको खुदा का रूप दिखाता हूं।
दर्पण हूं मैं, सत्य का वक्ता,
चेहरों की छाया में छुपा एक किस्सा।
हर दर्द, हर मुसीबत,
मेरे सामने है जैसे एक सिरात।



इस चेहरे में छुपा है,
हर इंसान का अपना तर्जुमान।
दर्पण हूं मैं, समय का साक्षी,
जीवन के रंगों को दर्शाने वाला एक माया।
दर्पण हूं मैं, जो तुम्हें सच्चाई दिखाता है,
तेरे अंदर के सब रंगों को सम्मान दिलाता हूँ।
मैं जो रोशनी बिखेरता हूँ, वही तुम्हें चमकाता है,
तेरे अंदर की खूबसूरती को दुनिया को बताता हू

दर्पण हूँ मैं, आसमान का एक अंश,
जीवन की उच्चता, सच्चाई का परिचय।
सफलता की चुनौती में, मैं हूँ एक विजेता,
मुझमें है वह शक्ति, जो कभी नहीं होती हार।

आँधियों में मैं हूँ, बल और सहस का प्रतीक,
चला हूँ मैं, संघर्ष से अपनी मंजिल की ओर।
दर्पण हूँ मैं, सच का प्रतिबिंब,
जहाँ बिखरता है रूप, वहाँ बसती है मेरी शक्ति।

दर्पण हूँ मैं, सच्चाई की खोज में,
जीवन का परिचय, मेरी शौर्यगाथा की शुरुआत हूँ।
हर दर्पण में हूँ मैं, जो बताता है,
जीवन का हर सवाल का संवेदनशील उत्तर।

मैं वो दर्पण हूं, जो छोड़ता नहीं हूं,
हर पल मुझमें छुपा सच दिखाता हूं।
सच्चाई का आईना, मैं हूं उसका रूप,
कभी हंसता हूं, कभी रोता हूं।

जीवन की कहानी, मैं हूं उसका अंश,
हर एक रोज़, नया चेहरा दिखाता हूं।
मैं वो दर्पण हूं, जो सच्चाई को छुपाने का नहीं,
हर राज को मैं खोलता हूं, खुद को ही बताता हूं।

कौन हूं मैं,

दर्पण हूँ मैं, सच्चाई का दर्पण,

COMMENTS OF THE POEM
Be the first one to comment on this poem!
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
ARYAN KUMAR

ARYAN KUMAR

follow poet
ARYAN KUMAR
follow poet
Close
Error Success