अपना होता
सोमवार, १२ जुलाई २०२१
कोई जो अपना होता
में उसे अपना लेता
गले लगाता और मुस्कुराता
जुल्फों को हवा में लहराता। कोई जो अपना होता
बेरुखी रखनेवाली इस दुनिया को
मतवाली बनाके रखता
मिलना होता सबसे जब प्यारका होता रिश्ता
देता में सबको इंसानियत का वास्ता। कोई जो अपना होता
चारो तरफ है हाहाकार हुआ
मेरे दिल में सवाल पैदा हुआ
नफरत की ये दीवारे कब टूटेगी
भाईचारे की गूंज कब उठेगी? कोई जो अपना होता
दिल मेरा बस में नहीं
नफरत से मुजे कोई लेना-देना नहीं
आओ तुम मुझे गले से मिलो
धीरे से मेरे सामने 'हेलो' कहो
दूरियां मिटाना मुश्किल होगा
आज को कलपर छोड़ना होगा
नफरत की दीवार को मिटाना होगा
प्यार से उसपर दस्तक देना होगा। कोई जो अपना होता
बनता नहीं कोई यूँही अपना
दिलकी जलन को दिल में ही रखना
हो सकेतो नफरत को मिटाना
जो भी मिले उसे प्यार से बुलाना। कोई जो अपना होता
छोटी सी दुनिया से अलविद्दा होंगे हम
जवानी में हम भरा करते थे दम
नहीं सुनते थे नहीं मानते थे
बस अपनी ही बाते कहा करते थे हम। कोई जो अपना होता
आज हमने माना है कसूर
क्यों हम सताते थे बेकसूर
हो जाता है जीवन में अक्सर
यही तो मौक़ा है यही हैअवसर। कोई जो अपना होता
डॉ. हसमुख मेहता
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem