A-167 बदचलन हवा Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-167 बदचलन हवा

A-167 बदचलन हवा-11.8.15—12.25PM

बदचलन हवा का बहाव उसका गुस्सा
बंद पड़ी खिड़की को भी जोश आया

द्वारपाल भी थोड़ा विचलित होने लगा
शोर के समक्ष कुंडे ने भी शोर मचाया

रुक रुक के दस्तक किये वो देता था
फिर शांति ने भी जमकर उधम मचाया

हवा के दबाव में जिंदगी दबी पड़ी थी
मायने बदलते गए मन को होश आया

हवा की बेरुखी ही उसका स्वभाव है
कोई नहीं जो कभी भी उससे टकराया

हवा टकरा कर खुद ही ठहर गयी है
लहू लोहान जिंदगी को समझ आया

सब कुछ उजड़ कर बिखर गया जब
कुछ ऊँचा दिखा कहीं सिफर आया

दरवाजों पर पड़े वो दस्तक के निशां
कोई होकर गया उनका जिक्र आया

दरवाजे खोल डाले कोई पर्दा न रहा
जिंदगी की नग्नता थोड़ा मन घबराया

न करो दस्तक किसी बंद दरवाजे पर
पता नहीं कोई नग्न है कोई सरमाया

दस्तक भी तो सिर्फ तभी होती है वहां
जहाँ बंद हों दरवाजे लिपटी हो काया

खुल कर इजहार कर लो जिंदगी का
न रहे पर्दा न लगे ज़िस्म को छुपाया

नग्नता ही सच्चाई हो ज़िंदगी की जब
सकूं की नींद और भरपूर लुत्फ़ भाया

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-167 बदचलन हवा
Tuesday, March 10, 2020
Topic(s) of this poem: motivational
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