जय कोरोना बाबा की Poem by Dr. Yogesh Sharma

Dr. Yogesh Sharma

Dr. Yogesh Sharma

india
follow poet
Dr. Yogesh Sharma
follow poet

जय कोरोना बाबा की

जैसे हाजीजी उलझे अपनी दाड़ी में,
हम उलझ गए मामू की शादी में।
चारों ओर फुहारें थीं, डेटॉल और सेवलोन की,
उनकी महक से सांसे तो धड़्क रहीं थी,
पर मेरी बांयी आंख भी फड़्क रही थी।

सबको कोरोना की चिंता सता रही थी,
नमस्ते करने में भी रुह कांप रही थी,
ढूंढ रहे थे सभी राह खिसकने की,
हाथ मिलाने की जगह, कर रहे थे नमस्ते,
अंदर ही अंदर याद आ रहे थे फरिस्ते।

डर कर खड़े थे सब दूर दूर, पंडाल में,
मेकअप गायब हो गया, मास्क के फितूर में।
सैनेटाइजर बना काम अहम, भुले बात सजावट की,
महिलाएं पहने थी एंटी-कोरोना लोंग-इलायची माला,
बातॉं ही बातों में पूंछ रही थी रुपया दस वाला झाड़ा।

दूल्हा दुल्हन बैठे मंडप में, डरे सहमे से,
वरमाला भी डाली गई एक मीटर दूर से।
हाथ लगाए बिना, पूरी हुई रस्म फेरों की,
सभी ने शादी को देखा दूर टीवी स्क्रीन से,
मेकअप दुल्हन का किया लोंग और कपूर से।

कोसों दूर से दे रहे थे सभी पूरा आशीर्वाद,
थके बैठे कुर्सी पर, सोच रहे जाने की फरियाद।
सुलझती नहीं पहेली इन रिश्ते-नातों की,
तोड़ी हमारी गफलत, मामू को आई छींक,
छा गया आतंक, सूख गई सबकी पीक्।

भागे दूल्हा और दुल्हन, फुर्र स्टेज से कूद कर,
गये ओझल, मंडप छोड़, आये सेनेटाइज़ होकर्।
मजधार में छोड़, भागे सभी, चिंता अपनी जान की,
डर कर हाथ जोड़ मिन्नतें करने लगा घबराया मामू,
कॉरोना के साये में झांक रहे थे अपनी-अपनी बाजू।

दावत छोड़ हवा हुये सभी मेहमान,
खर्चे के लिए भागे हलवाई और जजमान।
अजब है, रीत इन खून के प्यारे रिश्तों की,
शादी में भूले भूख और चिंता, हंसने-मुस्कराने में,
कोरोना भी औंधे डूबा, खोलते तेल कढाई में।

कोरॉना का कहर सीमा पार शत्रु पर बरसे।
करोना बाबा अब हाथ जोड़ विनती करते तुमसे।
जाओ जिहादियों के यहां, छोडो दुनिया इंसानों की,
और कहना, बहुत सताया मेरे भक्त इंसानों को,
दो हिसाब खून के हर कतरे का, कोरोना यमदूत को।

जय कोरोना बाबा की
Saturday, March 14, 2020
Topic(s) of this poem: health
COMMENTS OF THE POEM
Be the first one to comment on this poem!
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Dr. Yogesh Sharma

Dr. Yogesh Sharma

india
follow poet
Dr. Yogesh Sharma
follow poet
Close
Error Success