पथ मीत बन गए मेरे
मंजिल की फिर परवाह नहीं
चलते जाओ जहाँ तक
पथ ही ले जाते सही
भय के डेरे अब दूर हुए सारे
पथ मीत बन गए मेरे
चलने में भी ख़ुशी है
रुकने में शांति का आभास
क्षण भर की थकन ही सही
पलभर में शीतल अहसास
पथ से गीत सुनने का अनुभव
बहुत कठोर कहीं है
नहीं पर दुर्गम
पथ के कांटे फूल बन गए
डेरा डाले हुए अंगारे अश्रु बन गए
चिंताओं की माला जाने कब
बन गयी सपनों का ताज
इतनी ख़ुशी मिली मुझे आज
पथ मीत बन गए मेरे
हर दुश्मन बन गया है अब ढाल
दोस्त भी यह देख हुए निहाल
गहरी सोच की खाई है अब
खुशियों की एक मुस्कान
कदम उठते नहीं थे जहाँ
अब दौड़ रहा सरपट सरपट
जाना कहाँ मुझे, ज्ञात नहीं
पथ के बाशिंदे ले जाएँ जहां
निकला था तो तलाश थी मंजिल की
अब न मंजिल है न तलाश है मंजिल की
पथ के गीतों की मिठास ने भुला दिया
मुझे और विषाद को मेरे
पथ मीत बन गए मेरे
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गहरी सोच की खाई है अब / खुशियों की एक मुस्कान निकला था तो तलाश थी मंजिल की अब न मंजिल है न तलाश है मंजिल की //.... बहुत सुंदर जज़्बात. यह भी कुछ कुछ वैसा ही है जैसे बकौल ग़ालिब 'दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना'.
thanks sir for appreciating and commenting this poem