ख़ुदी को कर बुलंद इतना... Poem by Jaideep Joshi

ख़ुदी को कर बुलंद इतना...

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले,
ख़ुदा बन्दे से पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है।

ठुकरा कर क्यों मुहब्बत को, अपना ली है तंज नज़र।
चेत जा वक़्त रहते तू, बदल अब डाल यह डगर।
काटना यूं सफ़र अपना, खुद में कम सज़ा क्या है।।

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले,
ख़ुदा बन्दे से पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है।

यहाँ दहशत, वहां वहशत, है छाया ताक़त का गुरूर।
फना होते तसव्वुर में, बड़ा बेमानी यह सुरूर।
बसर यूं ज़िन्दगी करने के, सिवाया और कज़ा क्या है।।

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले,
ख़ुदा बन्दे से पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है।

दिल-ओ-दिमाग पर हर पल, छाने लगे जब बेखुदी,
ख़्वाबों में भी गलती से, न आए ख्याल-ए-बदी।
फिर जानोगे की हर साँस, जीने का मज़ा क्या है।।

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले,
ख़ुदा बन्दे से पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है।

COMMENTS OF THE POEM
Be the first one to comment on this poem!
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success