कभी वो हम पर मेहरबान होते हैं Poem by Talab ...

कभी वो हम पर मेहरबान होते हैं

Rating: 5.0

कभी वो हम पर मेहरबान होते हैं
कभी पत्थरों के दिल ज़बान होते हैं

मिले इक आसरा तो जी लेते चार दिन
नसीब अपने ऐसे कहाँ होते हैं

क्यों ना करूँ इबादत ईमान से
सुना है पत्थर भी भगवन होते हैं

आग ओ रौशनी में फ़र्क़ नहीं जानते
ये परवाने भी कैसे नादान होते हैं

अजब है फितरत ए पत्थर ए कू ए यार की
पाऊं तले कभी सर रवां होते हैं

वाईज़ सी होश ना रिंदों सा मद्होश
हम कुछ दोनों के दरमियान होते हैं

ना सताओ कुछ देर सोएं सुकून से हम
ख्वाब में ही वो फुरोज़ाँ होते हैं

कुछ बेखुदी कुछ आवारगी कुछ जूनून
सब हो चुके तलब अब तमाम होते हैं

वाईज = Preacher
कु ए यार = The beloved's street
फुरोज़ाँ = resplendent, luminous

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 05 April 2017

आपकी कविता आने वाले कल के लिए बहुत उम्मीद जगाती है. बहुत खूब. धन्यवाद, मित्र.

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success