Activities of Anita Sharma

Anita Sharma added a poem titled बंगा (Man Who Loved Dogs Forever) to his/her favorites.
घणघोड़ि एक बस्ती है छोटी सी जहाँ बंगा की दूकान है, उसका संसार उसके भाइयों और दूकान के आसपास है, हाँ बंगा रिखू शेरू टाइगर सभी बारह कुत्तों से सनेह रखता है, टाउ टाउ की आवाज़ बंगा के कान में पड़ी वह खाट से ही चिल्लाया, बंगा भट्टी जो गन्दा थू बारह कुतर सौगी चलदे थी ऐ बंगे कदी फट न पाई तईं मेरे कुतरा जो फट कजो पायी! भौजाई पर गुस्साए बंगा को बिस्तर से उठना मुश्किल है! कुत्तों को मारना बंगा की आत्मा पर चोट करना था!
भट्ट ब्राह्मणो का कुनबा था, सारे भटियात में उनका नाम था, शिव के पुरोहित जो ठहरे, कहते हैं भट्ट ब्राह्मण ने शिव गौरी का लगन पढ़ा था! शिवा नुआला नहीं लेते भट्ट ब्राह्मणो से, शिव यजमान हैं कहाँ मजाल पुरोहित से कुछ स्वीकार करें! देते हैं शिव उनको शिव प्रिये हैं भट्ट ब्राह्मण!
साणु, माधो, बंगा यह तीनो आपस में चचेरे तातेरे भाई हैं! साणु संत आदमी हैं इंसान के वेश में देवता भेद बकरियां उनके खांसने भर से उनके पास चली आती हैं, सफ़ेद साफा और गड़रियों की चोली शिवा के भजन यूँ कहां शिव ही हैं और कौला देवी उनकी पत्नी दिन भर बच्चों की देख रेख करती लुआंचडी पहने छम छम अपने पति का इंतज़ार करती साक्षात् गौरी हैं पति पत्नी में गजब का प्रेम हैं आँख भर से दिल के भेद समझ लेते हैं!
माधो मज़दूरी करते हैं, ढोरों के पीछे पीछे चलते एक आध जड़ देते हैं! चिलम पीने में घंटा बीत जाता है, थिप्पो देवी माधो की पत्नी कुटाई पिसाई करके मुट्ठी भर अनाज जुटा लेती हैं, एक पांव् से लंगड़ा के चलकर भी मीलो दूर बनूड़ी की पहाड़ियों के परे दुधार पर पहुंचना उनके लिए आसान काम है!
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19 Jan, 12:50
Anita Sharma rated a poem titled बंगा (Man Who Loved Dogs Forever) 5- start ratings
घणघोड़ि एक बस्ती है छोटी सी जहाँ बंगा की दूकान है, उसका संसार उसके भाइयों और दूकान के आसपास है, हाँ बंगा रिखू शेरू टाइगर सभी बारह कुत्तों से सनेह रखता है, टाउ टाउ की आवाज़ बंगा के कान में पड़ी वह खाट से ही चिल्लाया, बंगा भट्टी जो गन्दा थू बारह कुतर सौगी चलदे थी ऐ बंगे कदी फट न पाई तईं मेरे कुतरा जो फट कजो पायी! भौजाई पर गुस्साए बंगा को बिस्तर से उठना मुश्किल है! कुत्तों को मारना बंगा की आत्मा पर चोट करना था!
भट्ट ब्राह्मणो का कुनबा था, सारे भटियात में उनका नाम था, शिव के पुरोहित जो ठहरे, कहते हैं भट्ट ब्राह्मण ने शिव गौरी का लगन पढ़ा था! शिवा नुआला नहीं लेते भट्ट ब्राह्मणो से, शिव यजमान हैं कहाँ मजाल पुरोहित से कुछ स्वीकार करें! देते हैं शिव उनको शिव प्रिये हैं भट्ट ब्राह्मण!
साणु, माधो, बंगा यह तीनो आपस में चचेरे तातेरे भाई हैं! साणु संत आदमी हैं इंसान के वेश में देवता भेद बकरियां उनके खांसने भर से उनके पास चली आती हैं, सफ़ेद साफा और गड़रियों की चोली शिवा के भजन यूँ कहां शिव ही हैं और कौला देवी उनकी पत्नी दिन भर बच्चों की देख रेख करती लुआंचडी पहने छम छम अपने पति का इंतज़ार करती साक्षात् गौरी हैं पति पत्नी में गजब का प्रेम हैं आँख भर से दिल के भेद समझ लेते हैं!
माधो मज़दूरी करते हैं, ढोरों के पीछे पीछे चलते एक आध जड़ देते हैं! चिलम पीने में घंटा बीत जाता है, थिप्पो देवी माधो की पत्नी कुटाई पिसाई करके मुट्ठी भर अनाज जुटा लेती हैं, एक पांव् से लंगड़ा के चलकर भी मीलो दूर बनूड़ी की पहाड़ियों के परे दुधार पर पहुंचना उनके लिए आसान काम है!
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19 Jan, 12:12
घणघोड़ि एक बस्ती है छोटी सी जहाँ बंगा की दूकान है, उसका संसार उसके भाइयों और दूकान के आसपास है, हाँ बंगा रिखू शेरू टाइगर सभी बारह कुत्तों से सनेह रखता है, टाउ टाउ की आवाज़ बंगा के कान में पड़ी वह खाट से ही चिल्लाया, बंगा भट्टी जो गन्दा थू बारह कुतर सौगी चलदे थी ऐ बंगे कदी फट न पाई तईं मेरे कुतरा जो फट कजो पायी! भौजाई पर गुस्साए बंगा को बिस्तर से उठना मुश्किल है! कुत्तों को मारना बंगा की आत्मा पर चोट करना था!
भट्ट ब्राह्मणो का कुनबा था, सारे भटियात में उनका नाम था, शिव के पुरोहित जो ठहरे, कहते हैं भट्ट ब्राह्मण ने शिव गौरी का लगन पढ़ा था! शिवा नुआला नहीं लेते भट्ट ब्राह्मणो से, शिव यजमान हैं कहाँ मजाल पुरोहित से कुछ स्वीकार करें! देते हैं शिव उनको शिव प्रिये हैं भट्ट ब्राह्मण!
साणु, माधो, बंगा यह तीनो आपस में चचेरे तातेरे भाई हैं! साणु संत आदमी हैं इंसान के वेश में देवता भेद बकरियां उनके खांसने भर से उनके पास चली आती हैं, सफ़ेद साफा और गड़रियों की चोली शिवा के भजन यूँ कहां शिव ही हैं और कौला देवी उनकी पत्नी दिन भर बच्चों की देख रेख करती लुआंचडी पहने छम छम अपने पति का इंतज़ार करती साक्षात् गौरी हैं पति पत्नी में गजब का प्रेम हैं आँख भर से दिल के भेद समझ लेते हैं!
माधो मज़दूरी करते हैं, ढोरों के पीछे पीछे चलते एक आध जड़ देते हैं! चिलम पीने में घंटा बीत जाता है, थिप्पो देवी माधो की पत्नी कुटाई पिसाई करके मुट्ठी भर अनाज जुटा लेती हैं, एक पांव् से लंगड़ा के चलकर भी मीलो दूर बनूड़ी की पहाड़ियों के परे दुधार पर पहुंचना उनके लिए आसान काम है!
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19 Jan, 12:12
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