shivani gaur

shivani gaur Poems

दो विपरीत ध्रुवों के बीच,
संतुलन नाप,
रस्सी पर झूलती नटनी,
गिरना जाने बिना संभलती है,
...

.दरवाज़े से,
जमीन का साथ देती
झिर्री से गुजरी......
.एक चिट्ठी,
...

बांधे थे कुछ ताबीज़ दरख्तों पर,
लगाये थे ताले अजाने शहर के एक पुल पर,
सर झुका धागों में गिरहें भी डाली थी,
बंद मुट्ठी की पीठ पर रख
...

The Best Poem Of shivani gaur

प्रेम

दो विपरीत ध्रुवों के बीच,
संतुलन नाप,
रस्सी पर झूलती नटनी,
गिरना जाने बिना संभलती है,
पार कर जाती है फासले
अंगूठे और ऊँगली के
बीच बैठी
खाली जगह के सहारे
बांच रक्खी हैं भाग्यारेखायें
प्रेम ने ।

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