ये रूह तक को भी डुबो गया (YE RUH TAK KO BHIGO GAYA) Poem by Nirvaan Babbar

ये रूह तक को भी डुबो गया (YE RUH TAK KO BHIGO GAYA)

तेरे शहर मैं तो हैं हम कहीं, पर अक्स हमारा तुम्हें दिखता ही नहीं,
आँखों से ओझल हम हो गए, फिर भी आँखों मैं बसते हैं हम कहीं,

तन से तो दूर हैं दूर पर, तेरे मन से कहाँ हम दूर हैं,
जागे रहे तेरी याद मैं, हम कभी सोए ही नहीं,

आँखे खुली की, खुली ही रह गयी, चाहत थी हमें दीदार की,
खिज़ा मिली हर पल हमें, चाहत तो थी, हमें बहार की,

तन टूट कर बिखर गया, ये धूल बन उड़ गया,
कण - कण मेरा उस धूल का तेरी राह मैं ही बिखर गया,

समंदर प्रेम का है उफान पर, हर पल ये ज्वार सा उठ रहा,
तन तो क्या, अरे मन भी क्या, ये रूह तक को भी डुबो गया,

निर्वान बब्बर

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