राक्षस रूप मे पहले भी, हालाँकि रहते थे उन्मादी!
आधुनिक दौर मे मगर, वो कहलाते हैं आतंकवादी! !
क्यूँ पूछते हो कि आतंकवादी का क्या मज़हब है!
कौन है उसका ईश्वर, अल्लाह, जीसस या रब है! !
जो भरा गया जेहन में, उसके सिवा कुछ जानते नही!
यही वजह की अपनी ग़लती को ग़लती मानते नही! !
क्या खाक जन्नत हासिल होगी, तुमको मरने के बाद!
मासूमों का कत्ल करते हो, और मज़लूमों को बर्बाद! !
जाने क्यों बाकी मुल्कों को भी कब्जाने को कहते हो!
मगर नरक बना रखा है, जहाँ पे अभी रहते हो! !
ज़्यादातर को पता नही, क्या है जीने की राह!
क्यों नही कहलाएगा फिर ऐसा मज़हब गुमराह! !
रट रखी हैं चीज़ें बस, फिर कैसा वो दीनो-ईमान!
कैसा मज़हब है कि, इंसान को ही मारे इंसान! !
आख़िर क्यों कर रहे हैं ऐसा, वजह भी नही पता!
क्या कसूर था उन बच्चों का, क्या थी उनकी खता! !
क्यों उन मासूमों पे तुम्हे, ज़रा रहम ना आया!
तुम्हारे मज़हब ने तुम्हे, रहम भी ना सिखाया! !
कुछ लोग बेवजह इनको, देते रहते हैं पनाह!
इस वजह से ही फिर, मारे जाते हैं बेगुनाह! !
कभी-कभी शिकारी भी खुद जाल मे फँस जाता है!
बिच्छू को सहला लो भले, मगर डस जाता है! !
सब कुछ जला डालती है, ये नफ़रत की आग!
तेरे अपनों को ही खा गया, तेरा पाला नाग! !
क्यों थोपते हो जिहाद की बेड़ी, 'पवन' वो तो बच्चे हैं!
तुम्हारे मज़हब से तो यूरोप के नास्तिक ही अच्छे हैं! !
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