तेरी आँखों में नारी
किसी ने झील, किसी ने समुन्दर देखा, तेरी आँखों में
मैंने तो बस आंसू ही देखा, नारी!
कभी आत्मज का मोह, कभी लिए प्रियतम विछोह
सिसकियों में ही डूबे देखा, नारी!
कभी ममता, कभी कुटुंब का बोझ है भारी तुझपे
थके बिन सेवा में बन जाती तू, चारी।
शक्ति लिए सृजन की तू, तू ही देती जन्म पुरुष को
उनके हाथ खिलौना देखा, नारी!
डाली से टूट तू मंदिर जाएगी या चढ़ेगी फिर मुर्दों पर
भाग्य का लेख तू भी न जाने, नारी!
जब आता है संकट भारी, हो जाती खड्ग सी कठोर
पर प्रेम के वश सदा ही हारी, नारी!
दुःख के घूंट अकेले पी खुशियों की तू बाँट लगाती
अपनों के लिए सर्वस्व लुटाती, नारी!
भरी होतीं इस जग की राहें सारी, दुखदायी काँटों से
चलना होता, बचा के आँचल, नारी!
पति चाहे पतित, व्यसनी हो, सहती उसको भी चुपके
पति के लिए भी सती ही होती, नारी!
अभागे हैं, देख पाते बस यौवन की जो सुंदरता तेरी
उम्र ढले माँ सी सुन्दर हो जाती, नारी!
पुष्प और नारी दोनों ही प्रभु की हैं दोनों अनुपम रचना
सुगंध से भरती घर की बगिया, नारी!
कितने निष्ठुर होंगे, दुखा देते जो, तेरे कोमल मन को
और भर देते आँखों में पानी, नारी!
- एस० डी० तिवारी
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