सवयं को अज्ञानी मानिए (Swayam Ko Agyani Maaniye) Poem by Nirvaan Babbar

सवयं को अज्ञानी मानिए (Swayam Ko Agyani Maaniye)

सवयं को अज्ञानी मानिए
अपनी साध ही ज्ञान,

ज्ञानी सम्मुख बैठ कर,
मुख को लीजे बाँध,

सुनिए बस सब बोल वो,
जो ज्ञानी मुख से गाए,

फिर सुन सब मन मैं साधिये,
वो ही कर्म का काज सजाए,

निर्वान बब्बर

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