Surkh Hontho Se Poem by milap singh bharmouri

Surkh Hontho Se

सुर्ख होंठो से शराब छलक रही है
तेरे होने से रात महक रही है
सोचता हूँ किस तरह व्यान करूं
मेरे होंठों पे जो बात थिरक रही है
पहाड़ों की इस बर्फीली सर्दी में
जिस्म में जैसे आग दहक रही है
झौंकें जबानी के जाग रहे है ' अक्स '
कुछ तेरी भी चाल बहक रही है
बदली से चाँद निकल रहा है ऐसे
जैसे चेहरे से नाकाव सरक रही है

COMMENTS OF THE POEM
Gajanan Mishra 07 August 2013

wonderful poem, thanks, I like it.

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