सपना इतना..sapna itna Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सपना इतना..sapna itna

सपना इतना

मुझे नींद नहीं आती
तुम सपनो में भी सुहाती
फिर मंद मंद मुस्कुराती
मेरे दिलको खूब लुभाती।

मुझे लग गयी हवा
प्रेम का बंधन युही आके छुआ
में रोज तुम्हे देखता ही रहूँ
बातें भी अपने आप करता रहूँ।

मन की आस बन गयी
जीने का मकसद होकर रह गयी
हरपल मुझे याद दिलाती है
चेन की नींद सुलाती भी है

मानो मन प्रेममय हो गया है
जीने का सहारा बन गया है
रूखी सुखी रोटी का अभिलाषी हो गया है
साथ गुजारने के लिए जैसे आदि हो गया है।

जीने की राहपर असंख्य कांटे भी होंगे
बेखबर रहनेपर चुभते भी होंगे
हमें अंदाज नहीं क्या गुजरती भी है
जब अँधेरी रात भी हमें डराती है।

हम यह भी नहीं कहते 'आप चाँद हो'
हमारे मन की सोयी हुइ मुराद हो
हमें प्यार से क्यों है सरोकार इतना?
आप उजागर कर देते हो सपना इतना

Friday, January 30, 2015
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 31 January 2015

Charlotte Calabro Is there a translation, Hasmukh Mehta? 1 hr · Unlike · 1 Hasmukh Mehta no, as it was meant for hindi people Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathalal 31 January 2015

Hasmukh Mehta welcome แทนขวัญ พอใจ like this. Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathalal 30 January 2015

मुझे नींद नहीं आती तुम सपनो में भी सुहाती

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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