Sanyukat Vishal Bharat Poem by milap singh bharmouri

Sanyukat Vishal Bharat

कैसा वो दौर था
कैसी थी हवाएँ
जब अपने प्यारे भारत को
लग रहीं थी बद्दुआएँ

जब घ्रीणा की दुर्गंध
हर ओर से थी आती
जब बन गया था वैरी
अपना धर्म- समप्रदाय और जाित

न जाने कैसी वो शतरंज थी
और कैसा था वो पासा
िजसने हर िकसी के मन में
भर दी थी िनराशा

कैसा वो दौर था
कैसी थी बहारें
जब दाडी-मूछ के भेद पर
बरस रही थी तलवारें

काश! के कोई न करता
उन सरहदों से शरार्त
काश! के अब भी होता
वो अपना संयुक्त िवशाल भारत

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
इस किवता में 1947 में भारत के िवभाजन के िलए िजम्मेदार धार्िमक, सामािजक, साम्परदाियक और राजिनितक दशाओं का वर्णन िकया गया है और एक संयुक्त िवशाल भारत की कल्पना की गई है.
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